Wednesday, February 3, 2010

Husn-e-taareef !!

Please ignore Radeef and Chand of the following poem because there is no dicipline of this poem. Sorry for this ! Will take care of this in my next composition.....
मस्त निगाहें आपकी, मदहोशियों पैमाना,
बात करें तो जैसे ग्ज़लों का फसाना |
खूब कहा है किसी ने,
देखा जिसने माह जमाल आपका ये हुस्न,
कैसे ना हो वो मुस्ताकबिल आपका दीवाना ?
मस्त निगाहें आपकी ; मदहोशी का पैमाना !!

(1.मदहोशियों-- Madness or a situation in which you don't remebember where you are , what you are
2. माह जमाल --Moon faced girl
3.मुस्ताकबिल--Receipient of something e.g when we recieve guests then we are Mustkabils
4.पैमाना-- Glass . Glass of wine(madness))

घड़ी
-दो-घड़ी देखा करें हमारी रफ भी,
इन आईनों में रखा क्या है ?
क्यों संभालते फिरते हैं ज़ुल्फ़ें अपनी ?
आने दीजिए तूफानों को,
मालूम तो पड़े,
इन खामोशियों का गिला क्या है ?

खुले
आम इस कद्र निकला ना करें,
मनचले देखकर हुस्न वालों को, शोर शराबा मचाते हैं |
अपनी नहीं फिक्र तो कम-से-कम, तनी तो सोच करें,
गुज़रेगी क्या उन राहगारों पे, जो यहाँ आते जाते हैं !!!
कोई देख ना ले खुली ज़ुल्फ़ें पकी,
यहाँ लोग तूफानों से घबराते हैं !
देखते हुस्न वालों को शोर शराबा मचाते हैं !!!!

देखे
से आपके जो हलचल मचे,
बेआरज़ू होके अलहा-अलहा कहें |
मत कार ज़ुल्म इतना ज़ालिम,
के ऊपर वाला देखे अदायें तुम्हारी,
खुद को हकीर--मूर्त कहे !!
बेबस होके वो भी अलहा-अलहा कहे,
वो भी अलहा अलहा कहे !!

(1.बेआरज़ू -- without any specific demand. In poem's context take it as: People are shouting अलहा-अलहा .Generally they cry in order to ask sth from Him. But they are not having any demand once they see her .HOpe you understand
2.हकीर--मूर्त-- a statue without any worth )

गुज़ारिशें
करते रहे,
दुआयें मांगते रहे,
मन्नतें भी मांगी बहुत,
मगर खुदा को कहाँ मंज़ूर थी खामोशियाँ ?
भेजा उनको महखाने में,
किलकारियाँ मारी लोगों ने बहुत |
'प्रेम' ब्यान क्या करे अब,
हुस्न--तारीफ आपकी?
हुस्न--तारीफ आपकी , बताने को,
अभी भी महखाने में शराबी हैं बहुत !!
हमने तो मन्नतें मांगी थी,
फिर भी किलकारियाँ मारी लोगों बहुत,
किलकारियाँ मारी लोगों ने बहुत !!

(1.किलकारियाँ -- To shout loudly like a mad
2.महखाने-- Bar.)