Sunday, November 7, 2010

पुरानी यादें



वो शिकन भरी आँखों से देखते थे, हम मोहोबत समझ लिया करते थे,
गुनाह कोई और किया करता था, सज़ा हम भुगत लिया करते थे |

जानते थे मंसूबे उनके,जो वो कर एक एहसान गिना गिना कर किया करते थे
फ़र्क़ इतना था ह्में इंतेहा मोहोबत थी , और वो इंतेहा तगफूर किया करते थे |

फकीर की आरजू ना पूछ कभी, तन्हाइयों में पला बढ़ा है वो,
सोचिए तो ह्श्र उनका जो कभी महफ़िलों में जिया करते थे |

नहीं पीता कोई शौक से, जमाने से निगाहें छुपाकर,
वो और दिन थे जा वो ह्में थाम कर पिलाया करते थे |

दूर कहीं किसी घर में दिया जलते देखकर अचंभा हुआ बहुत,
वो दौर गुज़र गया जब हमारी बस्ती वाले भी उजाले किया करते थे |

लड़खड़ाते कदमों को सहारा देना तो मेयखाने की अलामत है लेकिन,
कीजिएगा क्या उन कदमों का जो, गिरने के लिए ही पिया करते थे |

मुह ढका गया है तेरा उसी कफ़न से, जिससे वो परदा किया करते थे,
दफ़न किया जा रहा है तुझे "प्रेम" वहीं, जहाँ वो अक्सर तुझसे फरेब किया करते थे |

3 comments:

Anamikaghatak said...

pratyek pankti dil ko chhoo gayee ......bahut achha likha hai aapne

Surya Banyal said...

shaandaar ladke... chalo pyaar ne tujhe kuch diya na diya ho par ghazal aur sher-o-shayari ka hunar toh sikha hi diya..
mai umeed karonga ki 'woh' aur bewafai karti jaye..aur apne galib se nayi nayi rachnaye nikalti rahe !!

कडुवासच said...

... kyaa baat hai ... bahut sundar !!