Sunday, November 7, 2010

पुरानी यादें



वो शिकन भरी आँखों से देखते थे, हम मोहोबत समझ लिया करते थे,
गुनाह कोई और किया करता था, सज़ा हम भुगत लिया करते थे |

जानते थे मंसूबे उनके,जो वो कर एक एहसान गिना गिना कर किया करते थे
फ़र्क़ इतना था ह्में इंतेहा मोहोबत थी , और वो इंतेहा तगफूर किया करते थे |

फकीर की आरजू ना पूछ कभी, तन्हाइयों में पला बढ़ा है वो,
सोचिए तो ह्श्र उनका जो कभी महफ़िलों में जिया करते थे |

नहीं पीता कोई शौक से, जमाने से निगाहें छुपाकर,
वो और दिन थे जा वो ह्में थाम कर पिलाया करते थे |

दूर कहीं किसी घर में दिया जलते देखकर अचंभा हुआ बहुत,
वो दौर गुज़र गया जब हमारी बस्ती वाले भी उजाले किया करते थे |

लड़खड़ाते कदमों को सहारा देना तो मेयखाने की अलामत है लेकिन,
कीजिएगा क्या उन कदमों का जो, गिरने के लिए ही पिया करते थे |

मुह ढका गया है तेरा उसी कफ़न से, जिससे वो परदा किया करते थे,
दफ़न किया जा रहा है तुझे "प्रेम" वहीं, जहाँ वो अक्सर तुझसे फरेब किया करते थे |

Friday, October 29, 2010

मालूम नहीं



दिया जलाते-जलाते जल गई उंगलियाँ कब , मालूम नहीं
खाव्ब में क्या आए वो आज, हो गई सहर कब, मालूम नहीं....!!!
(सहर- morning time)

दौर गुज़र गया वो जब मुलाकात के बहाने ढूंढता था
तुझसे मिलकर कहूँगा क्या, किया है इंतज़ार कितना , मालूम नहीं ???

लाख झूठ कहे होंगे तुमने, एक और सही.
मेरे नाम का ज़िक्र हुआ महफ़िल में अगर, तो कह देना मालूम नही.....

इकक घूँट और पी लेने दे साकी आज चैन से,
किसी और रोज़ करेंगे हिसाब , कितनी पी शराब, आज मालूम नहीं

ना दिल में रही कोई उम्मीद , ना तुम्हारे जबाव का इंतज़ार कहीं,
जानता हू तुम कहोगी फिर वही, मालूम नहीं.......!!

खुदा तेरे इरफ़ान पर जिंदा है दुनिया , तेरी असलियत मगर कोई जानता नहीं
पूछा किसी ने उलफत का अंजाम तो कह दिया, मालूम नहीं ???
(इरफ़ान- cleverness; उलफत- love)

साकी तू ही बता मेरा कल, खुदा में तो अपना भरोसा नहीं,
पूछे कोई वाइज़ से उसका मुताकबल,तो कहेगा वो भी , मालूम नहीं
(मुताकबल- future)

उम्र भर लगा रहा "प्रेम" तेरे घर का रास्ता खोजने
हश्र ये के अब अपने घर का भी रास्ता मालूम नहीं.......
मालूम नहीं,,,,,मालूम नहीं ..... !!!

Thursday, May 20, 2010

अब रात नहीं बाकी (Ghazal)


"अब रात नहीं बाकी
"





पोंछ लूं मैं आँखें अपनी, के अब रात नहीं बाकी,
दो दिन गुज़रे नहीं और वो कह दिए, कोई मोहोबत नहीं बाकी !!

खुद ही के सवालों में उलझा रहता हूँ अक्सर,
के जवाब उनका सुनने की अब ताकत नहीं बाकी !!

अँधेरा होते ही , घर की ओर चल देता हूँ अमूमन ,
के रौशनी मैं घर जाने की हिम्मत नहीं बाकी !!

जाने क्यों ये लोग सहमे से ही जी रहे हैं ,
उनकी इक्क नज़र काम कर चुकी, अब कोई क़यामत नहीं बाकी !!

मैं खुद ही से बदले लेता आ रहा हूँ ,
ज़माने से हाथ चार करने की हिम्मत नहीं बाकी !!

सुना है उन्होंने आज बहुत अश्क बहाए,
मिला होगा मेरे नाम का आधा अधूरा ख़त कहीं बाकी !!

बहुत चालाकी से वो अपना काम कर गए , मगर,
बहुत चालाकी से वो अपना काम कर गए , मगर,
खंजर लाश पे गिरा रहा और वो समझे , कोई सुबूत नहीं बाकी !!

उनकी बस्ती कोई हमने इबादतगाह बना दिया,
खुदा तुझसे दुआ मांगने को अब कोई इबादत नहीं बाकी !!

तू पैमाने की गौर कर, इस महखाने की गौर कर,
ज़ख्मों पे महरम लगाने के लिए तेरी जरूरत नहीं साकी !!

इक्क दफा फिर गौर फरमायें .......

तू जाम ना भरने की बात न कर हमसे,
तू जाम ना भरने की बात न कर हमसे,
मत भूल के तू महखाने से है , महखाना तुझसे नहीं साकी !

"प्रेम" तेरे जीने मरने से क्या फर्क पड़ता है किसी को ?
तेरे कफ़न पे अश्क बहाने वाला अब कोई नहीं बाकी......!!
पोंछ लूं मैं आँखें अपनी, के अब रात नहीं बाकी..............!!

Monday, February 8, 2010

बेज़ुबाँ वक्त

ख्यालो दिमाग से मिटाना नामुमकिन, मौला तू मुझे पतथर कर दे,
रखूँगा एहसान तेरा उम्र भर, मुझे तू बेज़ुबाँ वक्त कर दे !!.........मौला तू मुझे पतथर कर दे |

मेरे तसब्बुर* में बसी तस्वीर , हक़ीक़त ना हो जाए कहीं,
सहरा* को मिला चाहे समंदर से, तू मुझे राख कर दे !!.........मौला तू मुझे पतथर कर दे |

काफिर* सनम से ना मांगा कुछ भी, हिज़्र-ए-नवाज़ीशें* वॅक्स दी हमें,
सलामती दे तू मेरे हमनशीं* को,, मुझे चाहे अश्क़ कर दे !!.........मौला तू मुझे पतथर कर दे |

बेआरज़ू होके "बेमिसाल" शौक-ए-गम की तमन्ना करते फिरते हैं,
उम्र भर उन्हीं के शौक कबूलना, आज़ मेरी फरियाद पाक* कर दे !!.........मौला तू मुझे पतथर कर दे |

वस्ल* की शब* ना रही , जाने कहाँ वो मिलन की खुशनुमा सहर
चाहने वालों को तू ज़िंदगी दे, हस्त-ए-प्रेम* खाक कर दे !!
रखूँगा एहसान तेरा उम्र भर , मुझे तू बेज़ुबाँ वक्त कर दे !.........मौला तू मुझे पतथर कर दे |
*Translated words :
तसब्बुर- (कल्पना)Imagination
हिज़्र-ए-नवाज़ीशें- (जुदाई के तोफे) Gifts of separation
सहरा- (रेगिस्तान) Desert
हस्त- (ज़िंदगी) Life
हमनशीं - (सनम) Beloved one
पाक - (पवित्र) Holy
वस्ल - (मिलन) Get together
शब- (शाम) evening
हस्त-ए-प्रेम- prem ki zindagi
काफिर- without heart

Wednesday, February 3, 2010

Husn-e-taareef !!

Please ignore Radeef and Chand of the following poem because there is no dicipline of this poem. Sorry for this ! Will take care of this in my next composition.....
मस्त निगाहें आपकी, मदहोशियों पैमाना,
बात करें तो जैसे ग्ज़लों का फसाना |
खूब कहा है किसी ने,
देखा जिसने माह जमाल आपका ये हुस्न,
कैसे ना हो वो मुस्ताकबिल आपका दीवाना ?
मस्त निगाहें आपकी ; मदहोशी का पैमाना !!

(1.मदहोशियों-- Madness or a situation in which you don't remebember where you are , what you are
2. माह जमाल --Moon faced girl
3.मुस्ताकबिल--Receipient of something e.g when we recieve guests then we are Mustkabils
4.पैमाना-- Glass . Glass of wine(madness))

घड़ी
-दो-घड़ी देखा करें हमारी रफ भी,
इन आईनों में रखा क्या है ?
क्यों संभालते फिरते हैं ज़ुल्फ़ें अपनी ?
आने दीजिए तूफानों को,
मालूम तो पड़े,
इन खामोशियों का गिला क्या है ?

खुले
आम इस कद्र निकला ना करें,
मनचले देखकर हुस्न वालों को, शोर शराबा मचाते हैं |
अपनी नहीं फिक्र तो कम-से-कम, तनी तो सोच करें,
गुज़रेगी क्या उन राहगारों पे, जो यहाँ आते जाते हैं !!!
कोई देख ना ले खुली ज़ुल्फ़ें पकी,
यहाँ लोग तूफानों से घबराते हैं !
देखते हुस्न वालों को शोर शराबा मचाते हैं !!!!

देखे
से आपके जो हलचल मचे,
बेआरज़ू होके अलहा-अलहा कहें |
मत कार ज़ुल्म इतना ज़ालिम,
के ऊपर वाला देखे अदायें तुम्हारी,
खुद को हकीर--मूर्त कहे !!
बेबस होके वो भी अलहा-अलहा कहे,
वो भी अलहा अलहा कहे !!

(1.बेआरज़ू -- without any specific demand. In poem's context take it as: People are shouting अलहा-अलहा .Generally they cry in order to ask sth from Him. But they are not having any demand once they see her .HOpe you understand
2.हकीर--मूर्त-- a statue without any worth )

गुज़ारिशें
करते रहे,
दुआयें मांगते रहे,
मन्नतें भी मांगी बहुत,
मगर खुदा को कहाँ मंज़ूर थी खामोशियाँ ?
भेजा उनको महखाने में,
किलकारियाँ मारी लोगों ने बहुत |
'प्रेम' ब्यान क्या करे अब,
हुस्न--तारीफ आपकी?
हुस्न--तारीफ आपकी , बताने को,
अभी भी महखाने में शराबी हैं बहुत !!
हमने तो मन्नतें मांगी थी,
फिर भी किलकारियाँ मारी लोगों बहुत,
किलकारियाँ मारी लोगों ने बहुत !!

(1.किलकारियाँ -- To shout loudly like a mad
2.महखाने-- Bar.)

Thursday, January 21, 2010

परदा उठा बैठे!!

नूर आ गया शाम में,
चाँद लगा शर्माने,
तारों टिमटिमा कर करो एहतराम,
वो लगें हैं परदा उठाने!!

शराबियों ने भर-भर के जाम भर लिए,
महखाने भी लगे गज़लें गाने;
वाइज़ों मन्न्तें माँगो खुदा से हमारे लिए,
के वो परदा लगे हैं उठाने!!!


कोई संभाले हूमें आज़,
तूफान लगे हैं आने;
सुना था के हलचलें होती हैं,
तबाही होती है......
लहरें उठती हैं समंदर में,
सनसनी आवाज़ें होती हैं!!
आज़ होश ही किसे है बस्ती में?
सुना है कि अमावस शाम को आते है वो,
बस्ती में उनकी इनायतें होती है !!!


आए क्या वो पल दो पल शहर में,
हर जगह उजाले हो गये!
दुनिया वाले देखते रहे उन्हें,
पलकें झपक झपक क्रर्,,,,
उनके जाते ही मालूम पड़ा,
हम तो पलकें झपकना ही भूल गये!!


उनके
इधर रहते रहते ,
कोई संभाल ले हमें ....
जाते ही उनके, महखाने से,
ये मदभरा प्याला टूट जाएगा ,!!
"सुकून--जाम" भरने दो आज,
फिर महखाने में ऐसा सकी , खुदा जाने कब आएगा ??



महफिल में जो वो आए आज़,
होश ही खो बैठे,,
"दीदार--ज़ुल्मत" होते ही ,
"होश वालों" से उनका पता पूछ बैठे !!
दोस्तों ने संभाला भी कुछ कद्र तक,
अफसोस !!
अफसोस, के रकीब भी मौजूद थे वहीं,
जो उनका परिचय दे बैठे !!
बची हुई जान भी निकल गई उस वक्त,
जब भारी महफिल में वो परदा उठा बैठे !!
भारी महफिल में वो परदा उठा बैठे !!