Thursday, May 20, 2010

अब रात नहीं बाकी (Ghazal)


"अब रात नहीं बाकी
"





पोंछ लूं मैं आँखें अपनी, के अब रात नहीं बाकी,
दो दिन गुज़रे नहीं और वो कह दिए, कोई मोहोबत नहीं बाकी !!

खुद ही के सवालों में उलझा रहता हूँ अक्सर,
के जवाब उनका सुनने की अब ताकत नहीं बाकी !!

अँधेरा होते ही , घर की ओर चल देता हूँ अमूमन ,
के रौशनी मैं घर जाने की हिम्मत नहीं बाकी !!

जाने क्यों ये लोग सहमे से ही जी रहे हैं ,
उनकी इक्क नज़र काम कर चुकी, अब कोई क़यामत नहीं बाकी !!

मैं खुद ही से बदले लेता आ रहा हूँ ,
ज़माने से हाथ चार करने की हिम्मत नहीं बाकी !!

सुना है उन्होंने आज बहुत अश्क बहाए,
मिला होगा मेरे नाम का आधा अधूरा ख़त कहीं बाकी !!

बहुत चालाकी से वो अपना काम कर गए , मगर,
बहुत चालाकी से वो अपना काम कर गए , मगर,
खंजर लाश पे गिरा रहा और वो समझे , कोई सुबूत नहीं बाकी !!

उनकी बस्ती कोई हमने इबादतगाह बना दिया,
खुदा तुझसे दुआ मांगने को अब कोई इबादत नहीं बाकी !!

तू पैमाने की गौर कर, इस महखाने की गौर कर,
ज़ख्मों पे महरम लगाने के लिए तेरी जरूरत नहीं साकी !!

इक्क दफा फिर गौर फरमायें .......

तू जाम ना भरने की बात न कर हमसे,
तू जाम ना भरने की बात न कर हमसे,
मत भूल के तू महखाने से है , महखाना तुझसे नहीं साकी !

"प्रेम" तेरे जीने मरने से क्या फर्क पड़ता है किसी को ?
तेरे कफ़न पे अश्क बहाने वाला अब कोई नहीं बाकी......!!
पोंछ लूं मैं आँखें अपनी, के अब रात नहीं बाकी..............!!