Sunday, November 7, 2010

पुरानी यादें



वो शिकन भरी आँखों से देखते थे, हम मोहोबत समझ लिया करते थे,
गुनाह कोई और किया करता था, सज़ा हम भुगत लिया करते थे |

जानते थे मंसूबे उनके,जो वो कर एक एहसान गिना गिना कर किया करते थे
फ़र्क़ इतना था ह्में इंतेहा मोहोबत थी , और वो इंतेहा तगफूर किया करते थे |

फकीर की आरजू ना पूछ कभी, तन्हाइयों में पला बढ़ा है वो,
सोचिए तो ह्श्र उनका जो कभी महफ़िलों में जिया करते थे |

नहीं पीता कोई शौक से, जमाने से निगाहें छुपाकर,
वो और दिन थे जा वो ह्में थाम कर पिलाया करते थे |

दूर कहीं किसी घर में दिया जलते देखकर अचंभा हुआ बहुत,
वो दौर गुज़र गया जब हमारी बस्ती वाले भी उजाले किया करते थे |

लड़खड़ाते कदमों को सहारा देना तो मेयखाने की अलामत है लेकिन,
कीजिएगा क्या उन कदमों का जो, गिरने के लिए ही पिया करते थे |

मुह ढका गया है तेरा उसी कफ़न से, जिससे वो परदा किया करते थे,
दफ़न किया जा रहा है तुझे "प्रेम" वहीं, जहाँ वो अक्सर तुझसे फरेब किया करते थे |