चाँद लगा शर्माने,
तारों टिमटिमा कर करो एहतराम,
वो लगें हैं परदा उठाने!!
शराबियों ने भर-भर के जाम भर लि
महखाने भी लगे गज़लें गाने;
वाइज़ों मन्न्तें माँगो खुदा से
के वो परदा लगे हैं उठाने!!!
कोई संभाले हूमें आज़,
तूफान लगे हैं आने;
सुना था के हलचलें होती हैं,
तबाही होती है......
लहरें उठती हैं समंदर में,
सनसनी आवाज़ें होती हैं!!
आज़ होश ही किसे है बस्ती में?
सुना है कि अमावस शाम को आते है
बस्ती में उनकी इनायतें होती है !!!
आए क्या वो पल दो पल शहर में,
हर जगह उजाले हो गये!
दुनिया वाले देखते रहे उन्हें,
पलकें झपक झपक क्रर्,,,,
उनके जाते ही मालूम पड़ा,
हम तो पलकें झपकना ही भूल गये!!
उनके इधर रहते रहते ,
कोई संभाल ले हमें ....
जाते ही उनके, महखाने से,
ये मदभरा प्याला टूट जाएगा ,!!
"सुकून-ए-जाम" भरने दो आज,
फिर महखाने में ऐसा सकी , खुदा जाने कब आएगा ??
महफिल में जो वो आए आज़,
होश ही खो बैठे,,
"दीदार-ए-ज़ुल्मत" होते ही ,
"होश वालों" से उनका पता पूछ बैठे !!
दोस्तों ने संभाला भी कुछ कद्र
अफसोस !!
अफसोस, के रकीब भी मौजूद थे वहीं,
जो उनका परिचय दे बैठे !!
बची हुई जान भी निकल गई उस वक्त,
जब भारी महफिल में वो परदा उठा
भारी महफिल में वो परदा उठा बैठे !!