चाहते तो बेपनाह हैं,
कहने से डरते हैं।
गुपचुप बात भी करते हैं,
मगर इकरार करने से डरते हैं।
डरते हैं शराफत से उनकी,
नजाकत से उनकी डरते हैं,
इज़हार तो करें हम मगर,
उनकी जुदाई से डरते हैं........ !!!
समां जो ये बंधा था एक दिन,
अपना न बना सके उन्हें,
मोहोबत भी की थी अथह हमनें,
मगर बता न सके कुछ उन्हें.........
बिछड़ने मिलने का खौफ किसे ??
उनकी बेवाफी से डरते हैं ,
मोहोबत तो करें हम इनतेहा ,
मगर उनकी जुदाई से डरते हैं।
अपना न बना सके उन्हें,
मोहोबत भी की थी अथह हमनें,
मगर बता न सके कुछ उन्हें.........
बिछड़ने मिलने का खौफ किसे ??
उनकी बेवाफी से डरते हैं ,
मोहोबत तो करें हम इनतेहा ,
मगर उनकी जुदाई से डरते हैं।
कुछ तो बात रही होगी,
यों ही बेताबी नहीं छा जाती।
रुतवा जवानी का ढला नहीं अभी ,
फ़िर भी हालात-ऐ-अंजाम से डरते हैं।
इज़हार तो करें हम,
मगर उनकी जुदाई से डरते हैं।
मिलने-मिलाने की रस्मों से नहीं,
उनके सजने संवरने की फिदरत,
खुदगर्ज़ अदाओं से डरते हैं।
मोहोबत तो करें इनतेहा हम,
मगर उनकी जुदाई से डरते हैं..... !!!
उनके सजने संवरने की फिदरत,
खुदगर्ज़ अदाओं से डरते हैं।
मोहोबत तो करें इनतेहा हम,
मगर उनकी जुदाई से डरते हैं..... !!!
देहलीज़ पर खड़े रह गए,
मासूमियत से उनकी हम डरते हैं,
जिंदगी और मौत तो आने जाने हैं,
खौफ क्या होता है,
हम तो उनकी मदभरी आंखों से डरते हैं.........
मोहोबत तो करें इनतेहा हम मगर
उनकी जुदाई से डरते हैं........
उनकी जुदाई से ...................... !!!
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