सवेरा हो आप ही से, शाम ढले तो आप ही से,
ये नूर, ये मयकशी; ये शब्नम, ये शराब, आप ही से !!
इशरत-ए-मोहोबत तो हर दिन मिली मगर,
आँखें मिली आँखों से, आप ही से..!!
मैं भटकता रहा हर दम दो लफ़्ज़ों की तालाश में,
गज़ल बनी तो आप ही से...!!
नहीं छुपती छुपाए ये दास्ताँ किसी से,
कहूँ मगर कैसे के हो गई है मोहोबत आप ही से..!!
ना क़ुरान पढ़ी ना सजदा, ना नमाज़ की अदा कभी,
मंदिर मस्जिद काबा सब आप ही से..!!
नादां थे हम जो फूल सितारों से सज़ा रहे थे,
रौनक आई घर में, आप ही से..!!
उम्र भर दर बदर ढोकरें खाता रहा हूँ मैं,
मेरी ज़िंदगी का ठिकाना, आप ही से..!!
सादगी देखिए तो ज़रा हमारी,
आपकी शिकायत करते हैं आप ही से (सुमित माफी चाहूँगा !!)
मंज़र दिखे तो तसल्ली हो "प्रेम" तुझे,
क्या खबर, सुकून मिले तो आप ही से !!
Monday, December 26, 2011
Tuesday, September 27, 2011
दिल लगाने के बाद
हमने मोहोबत की थी जिनसे दुनिया आज़माने के बाद,
वही शक्श दिल दुखा गया आज फिर इकक ज़माने के बाद |
कोई दुश्मनी नहीं हमारी इन अंधेरों से यों तो मगर,
ना जाने कहाँ गुम जाता है वो शक्श शाम ढल जाने के बाद |
सोचा था के इस घर को ताज बनाऊंगा में भी कभी,
ना बँगला बना, ना दयार बचा , इक्क ज़माना गुज़र जाने के बाद |
बस्ती वालों के आँगन में अंधेरा ना देख सका मैं उस दिन,
राख को हाथ पर रखकर रोया बहुत , घर जलाने के बाद |
तू मुझसे वो गुज़रे वक़्त की बातें ना कर आज
गुफ्तगू करूँगा ज़रूर मगर, वो पुराने खत जलाने के बाद |
मयखाने से बिन पिए लौट जाने वालों में हम नहीं साकी,
पीयेंगे छा कर मगर, आतिश-ए-गम सुलग जाने के बाद
तुझमें और चाँद में फ़र्क़ है तो बस इतना सा
वो दगा करता तो है मगर, रात गुज़र जाने के बाद |
अपनी बzम में हमारा ज़िक्र ना कर बैठना कभी कहीं ,
सौ बातें करेंगे ज़माने वाले , तुम्हारे चले जाने के बाद |
अच्छा होता जो तुम्हें कभी हमसे मोहोबत ना होती,
तगाफूर करने लगते . लोग अक्सर दिल लगाने के बाद |
वो तेरी शिद्दत में सदीयाँ गुजारने की बातें कर रहा था उधर अफ़सोस,
ज़िंदगी से वफ़ा ना कर सका "प्रेम" तेरे बेवफा होने के बाद |
Wednesday, February 9, 2011
सुखनवर
Sukhanvar
मुसाफिर दरिया का रंग देखता रहा दिनभर इधर
उफान-इ-कश्ती-इ-माझी गाफिल हो बह गया इधर |
पढने लगा था बहुत इल्म से जबीं-इ-लकीरों को,
वो इश्क-इ-समंदर में डूब मोती बन गया इधर |
मैं अपने घर में खुदा को पूजता रहा मगर,
दुनिया वालों की नज़र में कातिल बन गया उधर |
तेरी तालाश में ही गया था ,क्या खबर,
साकी भी न मिला और पैमाना भी खो गया उधर |
उन्हें ये डर , के मैं गर्दिश-इ-दहर में जाऊँगा किधर ?
जहाँ कदम रखता गया , रास्ता बनता गया उधर |
लज्ज़त-इ-फ़साना-मोहोबत्त में वक़्त गुज़र गया कुछ
वो खंज़र लिए इंतज़ार करता रहा उधर |
उनके नक्श-इ-हुस्न के सामने पिया था ज़हर,
उम्र दो दफा और बढ़ गई शायद उधर |
ना चश्म-इ-नीर, ना दर्द-इ-दिल किया बयां जिधर,
दीवार पैर नाम उनका लिख चुपचाप आ गए उधर |
दो आखार लिखकर ही जला दिया वो पन्ना अमूमन,
कहीं लोग उम्दा सुखनवर ना समझने लगें "प्रेम" तुझे उधर |
*********************************************
गाफिल=senseless
इल्म=knowledge
जबीं=forehead
गर्दिश-इ-दहर=world full of difficulties
फ़साना=story
नक्श-इ-हुस्न=the portrait of beauty
चश्म-इ-नीर=tears flowing out of eyes
सुखनवर=poet
***********************************************
मुसाफिर दरिया का रंग देखता रहा दिनभर इधर
उफान-इ-कश्ती-इ-माझी गाफिल हो बह गया इधर |
पढने लगा था बहुत इल्म से जबीं-इ-लकीरों को,
वो इश्क-इ-समंदर में डूब मोती बन गया इधर |
मैं अपने घर में खुदा को पूजता रहा मगर,
दुनिया वालों की नज़र में कातिल बन गया उधर |
तेरी तालाश में ही गया था ,क्या खबर,
साकी भी न मिला और पैमाना भी खो गया उधर |
उन्हें ये डर , के मैं गर्दिश-इ-दहर में जाऊँगा किधर ?
जहाँ कदम रखता गया , रास्ता बनता गया उधर |
लज्ज़त-इ-फ़साना-मोहोबत्त में वक़्त गुज़र गया कुछ
वो खंज़र लिए इंतज़ार करता रहा उधर |
उनके नक्श-इ-हुस्न के सामने पिया था ज़हर,
उम्र दो दफा और बढ़ गई शायद उधर |
ना चश्म-इ-नीर, ना दर्द-इ-दिल किया बयां जिधर,
दीवार पैर नाम उनका लिख चुपचाप आ गए उधर |
दो आखार लिखकर ही जला दिया वो पन्ना अमूमन,
कहीं लोग उम्दा सुखनवर ना समझने लगें "प्रेम" तुझे उधर |
*********************************************
गाफिल=senseless
इल्म=knowledge
जबीं=forehead
गर्दिश-इ-दहर=world full of difficulties
फ़साना=story
नक्श-इ-हुस्न=the portrait of beauty
चश्म-इ-नीर=tears flowing out of eyes
सुखनवर=poet
***********************************************
Subscribe to:
Posts (Atom)